केरल: वायनाड भूस्खलन में इतनी बड़ी तबाही की वजह क्या है?

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वायनाड में भूस्खलन के बाद लोगों को बचाने का काम अब तक जारी है.

 

तारीख़ 30 जुलाई. केरल के वायनाड ज़िले का मुंडक्कई. सेल्समैन अजय घोष को ‘बहुत तेज़’ आवाज़ ने हिलाकर रख दिया.

थोड़ी देर बाद तक वो समझ नहीं पाए कि वह तेज़ आवाज़ क्या थी. इसके बाद भारी बारिश के साथ मिट्टी का एक बड़ा सैलाब बहने लगा.

वायनाड ज़िले के मुंडक्कई, चूरलमाला और मलप्पुरम ज़िले के नीलांबुर वन क्षेत्र में हुए भूस्खलन में कम से कम 178 लोग मारे गए जबकि 98 लोग लापता हैं.

दोपहर दो बजे से शाम 4 बजे के बीच आए दो भूस्खलन इतने तीव्र थे कि इसका असर इलाक़े से 90 किलोमीटर दूर स्थित मलप्पुरम ज़िले के नीलांबुर जंगल तक देखा गया. यहां से बचावकर्ताओं ने 30 शव बरामद किए है ;

इन सभी इलाकों को माधव गाडगिल रिपोर्ट में पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र (ईएसज़ेड) घोषित किया गया है. ये रिपोर्ट पश्चिमी घाट के पर्यावरण से संबंधित है.

रिपोर्ट में उन क्षेत्रों की जानकारी दी गई है, जो अधिक संवेदनशील, थोड़े कम संवेदनशील या सबसे कम संवेदनशील हैं.

इस रिपोर्ट का केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु के सभी राजनीतिक दलों और राज्य सरकारों ने लगातार विरोध किया है.

हाल के सालों में केरल ने इस क्षेत्र में प्लांटेशन (बागान) से हटकर कुछ अन्य गतिविधियों को मंज़ूरी दी है.

चूरालमाला गांव में भी भारी तबाही मची है.

राहत शिविर में रह रहे हैं प्रभावित लोग

बुधवार को गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में दावा कि 23 जुलाई को केरल सरकार को अर्ली वॉर्निंग भारत सरकार की तरफ से दी गई थी.

लेकिन केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा कि केंद्र सरकार की तरफ़ से सूचना वायनाड में तबाही हो जाने के कई घंटों बाद मिली थी.

विपक्षी दलों के सांसदों ने आरोप लगाया कि अगर बेहतर ‘ सिस्टम’ होता तो इस तरह से लोगों को मरने से बचाया जा सकता था.

वहीं वायनाड में भूस्खलन के कारण सैकड़ों लोगों को राहत शिविरों में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है. ये राहत शिविर चूरलमाला के चाय बागानों और मुंडक्कई में इलाइची के बागानों के आसपास बनाए गए हैं.

बीबीसी हिंदी से बातचीत में मुंडक्कई के सेल्समैन अजय घोष ने बताया, “हम रात के करीब 1.50 बजे तेज़ आवाज़ के साथ उठे. हमें एहसास हुआ कि चारों तरफ भारी मात्रा में कीचड़ बह रहा है. जहां भूस्खलन का सबसे अधिक असर दिखा, मैं वहां से महज़ आधा किलोमीटर दूर रहता हूं.”

परेशान दिख रहे घोष ने कहा कि वो ‘खुशनसीब’ हैं कि भूस्खलन में उन्होंने अपने परिवार के किसी सदस्य को नहीं खोया लेकिन उनके घर के पास ही 40 लोगों की मौत हुई है.

ये जगह आधा किलोमीटर से भी कम दूरी पर है, जहां इतनी मौतें हुईं.

एक छोटे से कस्बे मुंडक्कई में चाय के बागान भी हैं. पश्चिम बंगाल और असम से बड़ी संख्या में बागान श्रमिक यहां आते हैं.

दोपहर बाद बचाव अभियान में दिक़्क़त आई क्योंकि मुंडक्कई को चूरलमाला से जोड़ने वाला पुल भूस्खलन में ढह गया था.

पहले भी वायनाड भूस्खलन से रहा है प्रभावित

वायनाड ज़िले के इस पहाड़ी इलाक़े में भूस्खलन कोई नहीं बात नहीं है. गाडगिल रिपोर्ट में भी इस संबंध में जानकारी दी गई है.

साल 2019 में चूरलमाला-मुंडक्कई क्षेत्र से लगभग 10 किलोमीटर दूर 17 लोगों की मौत हो गई थी.

केरल वन अनुसंधान संस्थान (केएफ़आरआई) की एक रिपोर्ट में भूस्खलन की वजह चट्टानों में खनन को बताया गया था.

साल 2018 और 2019 में करीब 51 बार भूस्खलन होने की जानकारी मिली थी.

उस वक्त पुथुमाला-नीलांबुर क्षेत्र में 34 सेंटीमीटर की बारिश हुई थी.

कोच्चि यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के एडवांस्ड सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रडार रिसर्च के डायरेक्टर अभिलाष एस ने बीबीसी को बताया, “इस बार बीते दो हफ्तों से जारी भारी बारिश के बाद मंगलवार को बहुत अधिक बारिश हुई. आप इसे मुख्य वजह ना भी मानें, लेकिन यह एक मूल वजह ज़रूर है.”

उन्होंने कहा, “पूरे क्षेत्र में 60-70 फ़ीसदी ज़्यादा बारिश हुई है. किसान संगठनों समेत सभी मौसम निगरानी स्टेशनों ने 34 सेमी बारिश की सूचना दी. वहीं साल 2019 में महज़ एक दिन में ये दर 34 सेमी थी.”

केरल वन अनुसंधान संस्थान (केएफ़आरआई) के वैज्ञानिक डॉ टीवी संजीव ने नक्शों की मदद से बताया कि चूरलमाला से 4.65 किलोमीटर और मुंडक्कई से 5.9 किलोमीटर दूर खनन हो रहा था.

13 साल का इंतज़ार

इस बात को 13 साल हो गए हैं, जब गाडगिल रिपोर्ट में पश्चिमी घाट को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बताया गया था.

ये पता होने के बाद घातक मानवीय गतिविधियों पर रोक लगाना ज़रूरी हो जाता है.

केंद्र सरकार ने मार्च 2014 से अभी तक अधिसूचना के पांच मसौदे जारी किए हैं. लेकिन अंतिम अधिसूचना अब तक जारी नहीं हुई.

इसकी प्रमुख वजह दो पड़ोसी राज्यों केरल और कर्नाटक का विरोध है. कर्नाटक ये चाहता है कि मसौदा अधिसूचना इस आधार पर वापस लिया जाए कि इससे लोगों की आजीविका प्रभावित होगी.

इस मुद्दे पर ढिलाई बरते जाने की वजह से पेड़ों की कटाई, खनन और इमारतों के निर्माण जैसी पर्यावरणीय रूप से खतरनाक मानवीय गतिविधियों को बढ़ावा मिला है.

इससे मिट्टी भरभरा गई और पहाड़ों में अस्थिरता आई है. डॉ संजीव इसे ही भूस्खलन का प्रमुख कारण मानते हैं.

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